इश्क़ मे जीना इश्क़ मे मरना हुआ
हमसे और कोई काम दूजा न हुआ
सूरज समंदर, चाँद बादलों में छुपा
मेरे घर किसी तरह उजाला न हुआ
रईसी कभी मुझको रास नहीं आई
औ ग़रीबी में अपना गुजरा न हुआ
तुम जिसके लिए मुझे छोड़ गए थे
आख़िरकार वो भी तुम्हारा न हुआ
हम तो सब के लिए जिए और मरे
लेकिन मुकेश कोई हमारा न हुआ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हमसे और कोई काम दूजा न हुआ
सूरज समंदर, चाँद बादलों में छुपा
मेरे घर किसी तरह उजाला न हुआ
रईसी कभी मुझको रास नहीं आई
औ ग़रीबी में अपना गुजरा न हुआ
तुम जिसके लिए मुझे छोड़ गए थे
आख़िरकार वो भी तुम्हारा न हुआ
हम तो सब के लिए जिए और मरे
लेकिन मुकेश कोई हमारा न हुआ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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