Pages

Friday, 4 January 2019

अभी, मुस्कुराहट से छुपा रक्खा है

अभी, मुस्कुराहट से छुपा रक्खा है
कभी ज़ख्मों को रो के दिखाऊंगा मै

जानता हूँ मै तुम भी कम दुखी नही
अपने लतीफों से तुझे हंसाऊँगा मै

अभी तुम्हे भी फुर्सत नहीं मुझे भी
कभी मौका निकाल के आऊँगा मै

कौन कहता है तेरा सीना पत्थर है
इसी पत्थर पे फूल खिलाऊँगा मै

मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

No comments:

Post a Comment