कहो तो तुम्हारे ये घने गेसू छू के देखूं तो
बादल छम- छम कैसे बरसते हैं जानू तो
तुम बहुत मासूम बहुत प्यारी लगती हो
गुस्सा मत होना,जो तेरे गलों को चूमू तो
ये सांझ का वक़्त और ये मंद-मंद हवाएँ
कित्ता अच्छा हो गर मै तुम संग घूमूं तो
कुछ चैन कुछ आराम मिल जाएगा अगर
मुकेश तेरी गोद में सर रख कर सो लूँ तो
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
बादल छम- छम कैसे बरसते हैं जानू तो
तुम बहुत मासूम बहुत प्यारी लगती हो
गुस्सा मत होना,जो तेरे गलों को चूमू तो
ये सांझ का वक़्त और ये मंद-मंद हवाएँ
कित्ता अच्छा हो गर मै तुम संग घूमूं तो
कुछ चैन कुछ आराम मिल जाएगा अगर
मुकेश तेरी गोद में सर रख कर सो लूँ तो
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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