तुम्हारी,
आँखे लाल थीं
तुम सोना चाहती थी
किंतु नींद तुम्हारी आंखो से कोशों दूर थी
तुम्हारे बदन का रेशा - रेशा
इक गहरी नींद चाहता था
पर नींद की तुमसे अदावत थी
ऐसे में
मै तुम्हें सुनाना चाहता था
एक मीठी लोरी
और तुम्हें सुलाना चाहता था दे कर मीठी - मीठी
हल्की हल्की था्पकियां
किंतु
तुम ज़िद पे अड़ी थी
और तुम नहीं चाहते थे ऐसा कुछ
लिहाज़ा हम दोनों लेटे रहे
एक दूजे की तरफ पीठ किए
करवट लिए हुए
देर तक दीवारों को देखते हुए
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,
आँखे लाल थीं
तुम सोना चाहती थी
किंतु नींद तुम्हारी आंखो से कोशों दूर थी
तुम्हारे बदन का रेशा - रेशा
इक गहरी नींद चाहता था
पर नींद की तुमसे अदावत थी
ऐसे में
मै तुम्हें सुनाना चाहता था
एक मीठी लोरी
और तुम्हें सुलाना चाहता था दे कर मीठी - मीठी
हल्की हल्की था्पकियां
किंतु
तुम ज़िद पे अड़ी थी
और तुम नहीं चाहते थे ऐसा कुछ
लिहाज़ा हम दोनों लेटे रहे
एक दूजे की तरफ पीठ किए
करवट लिए हुए
देर तक दीवारों को देखते हुए
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,
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