तुम्हारे
नाम का ख़त लिख के
नाव बना दी है
कागज़ की
और - बहा दिया है
वक़्त की नदी में - ये सोच कर
शायद ये थपेड़े खा खा कर किसी दिन
तुम तक पहुंच ही जाये
और तुम इसपे बैठ के
आ जाओ मुझ तक
फिर हम करें केलि - देर तक
अनंत काल तक
मुकेश इलाहाबादी -------------
नाम का ख़त लिख के
नाव बना दी है
कागज़ की
और - बहा दिया है
वक़्त की नदी में - ये सोच कर
शायद ये थपेड़े खा खा कर किसी दिन
तुम तक पहुंच ही जाये
और तुम इसपे बैठ के
आ जाओ मुझ तक
फिर हम करें केलि - देर तक
अनंत काल तक
मुकेश इलाहाबादी -------------
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-03-2019) को "पन्द्रह लाख कब आ रहे हैं" (चर्चा अंक-3277) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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