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Monday 18 March 2019

उदास दोपहर

वो
एक उदास दोपहर थी
नहीं -नहीं वो एक उदास शाम थी
नहीं नहीं वो एक उदास रात थी
खैर छोड़ो क्या फर्क पड़ता है
वो उदास दिन था - उदास साँझ थी या रात थी
ये तो तय है वो
एक उदास लम्हा था
अजीब सी मनहूसियत थी
वज़ूद में इक बेचैनी सी तारी रहती थी
जो उस वक़्त भी बहुत घनी भूत हो के छाई थी

"मै" रोज़ सा एक बी के नोटिफिकेशन पेज को स्क्रॉल कर रहा था
सहसा - एक पिक पे नज़र आ के ठिठक गयी
खूबसूरत आँखे - भरे -भरे गाल
प्यारे मूँगिया होठ - बस - यूँ ही आदतन कह लो या
न जाने किस अंतःप्रेरणा वश उंगली - "सेंड फ्रेंड रिक्वेस्ट " पे अनायास दब गयी
और ये महज़ एक साधारण बात समझ अपनी याददास्त के कोने में
रख के भूल भी चुका था

पर मुझे क्या मालूम आज मैंने - आभासी दुनिया में उस बटन को दबाया है -
जो बहुत बड़ा फलक बनने जा रहा है।
खैर -----
दो चार दिन बाद  उस गुलाबी गालों वाली ने मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली।

मेरी कुछ रचनाए उसने पसंद की - मैंने वाल पे धन्यवाद दिया
मैसेंजर पे - औपचारिक बातें हुई
मैंने - अपनी एक कहानी भेजने और प्रतिक्रिया के लिए कहा - उसने "हाँ " बोला
मैंने एक कहानी भेजी - तीसरे दिन - मेसेज -"अच्छी कहानी है " मै खुश हुआ
दूसरी कहानी भी पढ़ने का रिक्वेस्ट - "जी भेजिए " गुलाबी गालों वाली क्यूटी का जवाब था
फिर तीसरी - फिर चौथी
फिर औपचारिक बातों का सिलसिला
फिर ये औपचारिक बातें कब अनौपचारिक बातों में तब्दील हुई - पता ही न लगा

कब उदास सुबहें - नहीं नहीं दोपहर - नहीं नहीं शाम -
खिलखिलाने लगी पता ही न लगा -

कब ये आभाषी दुनिया - सजीब - सुंदर  और बेहद रंगीन लगने लगी पता ही न लगा

और - बस तब से
आज कल "मै" हूँ
और मेरी क्यूटी है है 


मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------

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