कहो
तो रख दूँ, अपने होठ
तुम्हारी भीगी पलकों पे
और सोख लूँ
सारी की सारी
दुख की नदी
जो बह रही है
तुम्हारे अंतस मे
न जाने कब से
तो रख दूँ, अपने होठ
तुम्हारी भीगी पलकों पे
और सोख लूँ
सारी की सारी
दुख की नदी
जो बह रही है
तुम्हारे अंतस मे
न जाने कब से
मुकेश इलाहाबादी,,
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