Pages

Tuesday 9 July 2019

चमकीला भविष्य

अल्ल सुबह
एक, कप चाय
या फिर एक कप
बोर्नवीटा वाले दूध के साथ
एक ब्रेड का टुकड़ा निगल के
बच्चा
घोंसले जैसे घर से
अपनी पीठ पे किताबों का बोझ लादे हुए
सबसे पहले निकलता है
भागता हुआ स्कूल बस को पकड़ता है
और हांफता हुआ अपनी सीट पे बैठ जाता है
ये देख माँ बाप आश्वस्त हो जाते हैं
और बच्चे की मुट्ठी में
चमकता हुआ भविष्य देखते हैं

बाद उसके
बच्चे की माँ
हड़बड़ाती हुई सुबह का नाश्ता निगलती है
और पति व परिवार के लोगों का नाश्ता मेज़ पे सजा कर
अपने कार्यालय हड़बड़ाती हुई अपने कंधे पे टंगे बड़े से बैग में
दोपहर के टिफिन के साथ अपना भविष्य और वर्तमान
सहजने की नाकाम सी कोशिश करती हुई
भागती है ऑफिस ये सोचती हुई है
आज कहीं फिर ऑफिस को  न लेट हो जाए 

बाद उसके
घोंसले का चिड़ा निकलता है
और कभी मेट्रो तो कभी सिटी बस में धक्के खाते हुए
के अपनी खाली हथेली करियाया भूत
रिश्ता हुआ वर्तमान देखता है
फिर वो घबड़ा के अपनी हथेली और ज़ोर से बंद कर लेता है
कि कंही रहा सहा चमकीला भविष्य तो न फिसल जाए उसकी
पीली हथेली से
और फिर हड़बड़ा के उतर पड़ता है
ऑफिस के बस स्टॉप पे

सांझ होते होते
तीनो - फिर अपने घोंसले में आते हैं

शायद किसी दिन उनकी हथेली में भी चमकता हुआ वर्तमान होगा

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------







No comments:

Post a Comment