सुनो !
अवि , मुझे नहीं मालूम
तुम इस वक़्त कहाँ हो किस दुनिया में हो, किस लोक में हो
पर इतना विस्वास है, तुम जहाँ कहीं भी हो अच्छे से हो,
अपने से श्रेष्ट आत्माओं के बीच हो जो तुम्हे इस संसार की नस्वरता और सत्यता के बारे में बता रहे होंगे,
तुम्हारे दुःख को कम कर कर के एक परम शांत अवस्था में ला चुके होंगे -
हाँ, उस वक़्त ज़रूर तुम थोड़ा असहज और दुखी हो जाते होंगे जब तुम अपने लोक से इस नश्वर लोक में झांकते होंगे
और अपनी नीना - ईशू और परिवार वालों को दुःखी देखते होंगे -
तो मै दूसरों की तो नहीं पर अपनी तरफ़ से विस्वास दिलाती हूँ, मेरे लिए मत दुखी होना - जहाँ भी हो वहां खुश रहना -
हमें ये मालूम तो नहीं पर ये भी विस्वास है कि तुम जिस लोक में हो वो लोक इस लोक इस लोक से बहुत दूर नहीं है, वो लोक
भी इस लोक के साथ दूध और पानी सा घुला मिला है , बस फर्क इतना है की उस लोक और इस लोक के बीच ज़िंदगी और
मौत का एक ऐसा पर्दा है जिसके गिरने के बाद आत्मा उस लोक से इस लोक को तो देख सुन और समझ पाती है - पर
इस लोक के लोग उस पर नहीं देख सुन पाते -
जैसे कांच के एक कमरे में तुम हो और दुसरे कमरे में मै जिसमे से तुम तो मुझे देख पा रहे हो पर मै नहीं -
पर अभी भी तुम मेरे पास उसी तरह हो जैसे मात्र एक सप्ताह पहले थे - तुम्हरी साँसे मै वैसे ही सुन पा रही हूँ जैसे
पहले सुन पाती थी - तुम्हारे लम्स लम्स को ठीक वैसे ही महसूस कर पा रही हूँ जैसे महज़ कुछ दिन पहले तक कर पाती थी
तुम्हारा वही गंभीर शानदार व्यक्तित्व वही मुस्कान वही प्यार भरा गुस्सा वही आदतें वही सब कुछ ,वही सब कुछ -
तभी तो तुमसे बात कर पा रही हूँ अवि -
लिहाज़ा तुम उदास मत होना वर्ना मै और उदास हो जाऊँगी -
मै तुमको ये खत तो इस लिए लिख रही हूँ ताकि, मै अपने बिखरे हुए वज़ूद को समेट सकूँ अपने आंसुओ को `अपनी पलकों में
क़ैद कर सकूँ ताकि ईशू मुझे रोता देख और न दुखी हो जाए
ताकि , तुमसे बात कर के खुद के डगमगाए आत्मविश्वास को इकठ्ठा कर सकूँ -
ये और बात मेरा विस्वास मेरा आत्मविस्वास मेरी खुशी मेरी दुनिया तुम - तुम और सिर्फ तुम ही थे तुम ही हो
तुम ही रहोगे - पिछले जन्मो में भी इस जन्म में भी थे और आगे भी रहोगे - शायद तब तक जब तक मेरी और तुम्हरी आत्मा परमात्मा में विलीन
नहीं हो जाती -
शायद मै कुछ ज़्यादा जज़्बाती होती जाती हूँ पर क्या करूँ अवि बस ऐसा लगता है दरवाज़ा खटके और तुम आ जाओ
और बस मै तुमसे लिपट के खूब- खूब रोलूं तुमसे शिकवा शिकायत कर लूँ -
खैर,,,,
तो तुमसे ये सब कह के मै खुद को तैयार कर रही हूँ - उन कागज़ों पे दस्तख्वत करने के लिए
जिनपे कोइ हिन्दू औरत दस्तख्वत नहीं करना चाहेगी - मै खुद को तैयार कर रही हूँ - कलकत्ता के उस फ्लैट में जा के सब कुछ सहेजने के लिए
जिसके हर कमरे की हर दीवार में हर स्पेश में तुम हो तुम हो और सिर्फ तुम हो - तुम्हरे साथ बिताये लम्हें हैं, तुम्हारे वो पर्सोनल बिलॉन्गिंग जिन्हे, जिन्हे
तुम इस्तेमाल करते थे- चाहे वो कपडे हों , शेविंग किट हो - पेन हो - ऑफिस बैग हो या कुछ
सहेज पाऊँ बिना रोये बिना उदास हुए - बिना ईशु को दुखी किये - खैर तुम उदास मत हो अवि -और भी बहुत कुछ-
खैर तुम मेरी बिलकुल चिंता मत करो मई बिलकुल ठीक हूँ
बस आज कमर में कुछ दर्द सा है - और घबराहट सी भी हो रही थी - और भी बहुत कुछ - बस इसी लिए तुमको ये सब लिखने बैठ गयी -
सच, अवि तुम्हारी ये अल्हड नदी जो अब तक बेख़ौफ़, बेलौस इठलाती बलखाती बहती रह, जो बह - बह के अपने हिसाब से तब या उदास हो जाती तो तुम्हरी समंदर सी बाँहों में समां के सोचती कि मेरी ज़िंदगी का समंदर तुम्ह ही तो हो - और शांत हो जाती -
पर तुम्हरी ये इठलाती नदी आज खुद दुःख का समंदर बन गयी है - जिसमे अब तो सिर्फ तूफ़ान आने है - या फिर शांत बहना है -
सच अवि आज से मात्र एक हफ्ते पहले तक तो मै ज़िंदगी को बस एक फूलों का बैग समझती थी और चिड़िया सा फुर्र - फुर्र उड़ती थी -
तभी तो तुम भी अक्सर मुझे पकड़ के मुस्कुराते हुए कहते थे क्या हर वक्त परिंदो सा उड़ती रहती हो - कभी किटी पार्टी में तो कभी योगा
क्लास में तो कभी
डांस की रिहर्सल के लिए और तब मै अपनी मुहब्बत के डैने समेट तुम्हारे बरगद सी साखों वाली डाल पे अपनी चोंच रख देती - और तुम मेरे सिर पे अपने होंठ।
सच जब याद आते हो न - तो बहुत बहुत कुछ याद आने लगता है - तुम्हारे संग साथ बिताया एक एक लम्हा - एक एक दिन - एक एक पल -
मैंने कभी कल्पना भी न की थी कि कभी तुम्हारे बिन भी रहना पड़ सकता है -
अवि जानती हो - हर स्त्री की तरह मेरी भी ख्वाहिश थी कि तुम एक बार कम से कम एक बार तो अपने मुँह से कहते - कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो -
पर तुमने कभी नहीं कहा कभी भी नहीं - इस बात से मै कई बार तो झुंझला भी जाती - उदास भी हो जाती - हाला कि मुझे भी प्रेम का आडम्बर पसंद नहीं
पर कभी कभी - थोड़ा बहुत तो ज़रूरी है - जीवन के रस को बनाए रखने के लिए - ऐसा मेरा मानना था - और इसी लिए एक तुमसे ये बात कही भी थी -
तब तुमने मुझे - पगली - कह के अपने सीने से लगा लिया था - और मै रो दी थी - और तुम मेरे बालों को सहलाते रहे थे - ये कह के - "पगली ये सब कहा नहीं जाता महसूस किआ जाता है " और मैंने रोते रोते तुम्हरी बातों की हाँ में हाँ मिला के छुप गयी थी तुम्हारे सीने में -
तुम्हे याद है अवि शुरुआत में तुम कित्ता कित्ता गुस्सा किया करते थे -
कई बार मै डर भी जाती थी - पर धीरे धीरे तुमने अपने गुस्से पे काबू किआ - और शांत शांत और शांत होते गए -
और इतने शांत हो जाओगे पता न था - वरना मैँ तुम्हे हमेशा गुस्सा वाला ही रहने देतीं -
अवि जानती हो इधर कुछ महीनो और सालों से मै तुम्हारे प्रेम को अपने लिए रोज़-रोज़ बढ़ते महसूस करती थी - ऐसा लगता था तुम अब अहले से ज़्यादा मेरी केयर करने लगे हो और ये बातें मुझे तुम्हारे शब्द नहीं तुम्हारी आँखे बतातीं तुम्हारे अंदाज़ बताते,
- जानती हो अभी कुछ दिन पहले ही मुझे जाने क्यों ऐसा आभाष हुआ की जैसे मेरी कोइ बहुत प्रिय चीज़ मुझसे खो रही है - उस दिन मै बहुत
डिस्टर्ब थी - पर मुझे क्या मालूम था - शायद काल को अपनी ये खुशी नहीं बर्दास्त हो रही है और वो तुमको ही मुझसे छीन ले जाएगा - अगर ऐसा जानती तो
मै उससे कहती तू मुझे ले जा पर मेरे अवि को बख्श दे - पर ऐसा कभी नहीं हो सकता था और न हुआ -
लिहाज़ा इस साल की दीवाली - ने अपनी अमावस्या की काली स्याही सी चादर ओढ़ा कर तुम्हे हमसे छीन ले गयी - और परिवार की खुशियों के सारे चराग़ बुझ गए - मुझे क्या पता था की इस बार की परीवा पे ज़िंदगी की सारी खुशियों के पर्वों पे ग्रहण लग जाएगा -
पर अवि तुम दुखी मत हो - इन एक हफ़्तों में तुम्हरी नीना ही नहीं तुम्हरा ईशु भी बहुत बड़ा और समझदार हो गया है -
मै भी कुछ दिनों में खुद को संभाल लूंगी ताकि -ईशु की ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा सकूं -
जानते हो उस दिन के बाद जितने लोग आ रहे हैं सब ये कह रहे थे कि मैंने तुम्हे बहुत कुछ सिखाया - पर उन लोगों को क्या पता की नीना ने नहीं
तुमने नीना को जीना सिखाया -हँसना सिखाया-समझदारी सिखाई -वरना आज तो तुम्हरी नीना टूट ही गयी होती।
खैर ! तुम उदास मत हो-मै ठीक हूँ -ईशू ठीक है-
मम्मी और परिवार के सभी लोग तुम्हे बहुत मिस करते हैं -
कहना तो बहुत कुछ है - पर फिलहाल इतना ही -
तुम्हरी अल्हड नदी
तुम्हारी चिड़िया
तुम्हारी पगली
तुम्हारी सब कुछ -- सब कुछ
अवि , मुझे नहीं मालूम
तुम इस वक़्त कहाँ हो किस दुनिया में हो, किस लोक में हो
पर इतना विस्वास है, तुम जहाँ कहीं भी हो अच्छे से हो,
अपने से श्रेष्ट आत्माओं के बीच हो जो तुम्हे इस संसार की नस्वरता और सत्यता के बारे में बता रहे होंगे,
तुम्हारे दुःख को कम कर कर के एक परम शांत अवस्था में ला चुके होंगे -
हाँ, उस वक़्त ज़रूर तुम थोड़ा असहज और दुखी हो जाते होंगे जब तुम अपने लोक से इस नश्वर लोक में झांकते होंगे
और अपनी नीना - ईशू और परिवार वालों को दुःखी देखते होंगे -
तो मै दूसरों की तो नहीं पर अपनी तरफ़ से विस्वास दिलाती हूँ, मेरे लिए मत दुखी होना - जहाँ भी हो वहां खुश रहना -
हमें ये मालूम तो नहीं पर ये भी विस्वास है कि तुम जिस लोक में हो वो लोक इस लोक इस लोक से बहुत दूर नहीं है, वो लोक
भी इस लोक के साथ दूध और पानी सा घुला मिला है , बस फर्क इतना है की उस लोक और इस लोक के बीच ज़िंदगी और
मौत का एक ऐसा पर्दा है जिसके गिरने के बाद आत्मा उस लोक से इस लोक को तो देख सुन और समझ पाती है - पर
इस लोक के लोग उस पर नहीं देख सुन पाते -
जैसे कांच के एक कमरे में तुम हो और दुसरे कमरे में मै जिसमे से तुम तो मुझे देख पा रहे हो पर मै नहीं -
पर अभी भी तुम मेरे पास उसी तरह हो जैसे मात्र एक सप्ताह पहले थे - तुम्हरी साँसे मै वैसे ही सुन पा रही हूँ जैसे
पहले सुन पाती थी - तुम्हारे लम्स लम्स को ठीक वैसे ही महसूस कर पा रही हूँ जैसे महज़ कुछ दिन पहले तक कर पाती थी
तुम्हारा वही गंभीर शानदार व्यक्तित्व वही मुस्कान वही प्यार भरा गुस्सा वही आदतें वही सब कुछ ,वही सब कुछ -
तभी तो तुमसे बात कर पा रही हूँ अवि -
लिहाज़ा तुम उदास मत होना वर्ना मै और उदास हो जाऊँगी -
मै तुमको ये खत तो इस लिए लिख रही हूँ ताकि, मै अपने बिखरे हुए वज़ूद को समेट सकूँ अपने आंसुओ को `अपनी पलकों में
क़ैद कर सकूँ ताकि ईशू मुझे रोता देख और न दुखी हो जाए
ताकि , तुमसे बात कर के खुद के डगमगाए आत्मविश्वास को इकठ्ठा कर सकूँ -
ये और बात मेरा विस्वास मेरा आत्मविस्वास मेरी खुशी मेरी दुनिया तुम - तुम और सिर्फ तुम ही थे तुम ही हो
तुम ही रहोगे - पिछले जन्मो में भी इस जन्म में भी थे और आगे भी रहोगे - शायद तब तक जब तक मेरी और तुम्हरी आत्मा परमात्मा में विलीन
नहीं हो जाती -
शायद मै कुछ ज़्यादा जज़्बाती होती जाती हूँ पर क्या करूँ अवि बस ऐसा लगता है दरवाज़ा खटके और तुम आ जाओ
और बस मै तुमसे लिपट के खूब- खूब रोलूं तुमसे शिकवा शिकायत कर लूँ -
खैर,,,,
तो तुमसे ये सब कह के मै खुद को तैयार कर रही हूँ - उन कागज़ों पे दस्तख्वत करने के लिए
जिनपे कोइ हिन्दू औरत दस्तख्वत नहीं करना चाहेगी - मै खुद को तैयार कर रही हूँ - कलकत्ता के उस फ्लैट में जा के सब कुछ सहेजने के लिए
जिसके हर कमरे की हर दीवार में हर स्पेश में तुम हो तुम हो और सिर्फ तुम हो - तुम्हरे साथ बिताये लम्हें हैं, तुम्हारे वो पर्सोनल बिलॉन्गिंग जिन्हे, जिन्हे
तुम इस्तेमाल करते थे- चाहे वो कपडे हों , शेविंग किट हो - पेन हो - ऑफिस बैग हो या कुछ
सहेज पाऊँ बिना रोये बिना उदास हुए - बिना ईशु को दुखी किये - खैर तुम उदास मत हो अवि -और भी बहुत कुछ-
खैर तुम मेरी बिलकुल चिंता मत करो मई बिलकुल ठीक हूँ
बस आज कमर में कुछ दर्द सा है - और घबराहट सी भी हो रही थी - और भी बहुत कुछ - बस इसी लिए तुमको ये सब लिखने बैठ गयी -
सच, अवि तुम्हारी ये अल्हड नदी जो अब तक बेख़ौफ़, बेलौस इठलाती बलखाती बहती रह, जो बह - बह के अपने हिसाब से तब या उदास हो जाती तो तुम्हरी समंदर सी बाँहों में समां के सोचती कि मेरी ज़िंदगी का समंदर तुम्ह ही तो हो - और शांत हो जाती -
पर तुम्हरी ये इठलाती नदी आज खुद दुःख का समंदर बन गयी है - जिसमे अब तो सिर्फ तूफ़ान आने है - या फिर शांत बहना है -
सच अवि आज से मात्र एक हफ्ते पहले तक तो मै ज़िंदगी को बस एक फूलों का बैग समझती थी और चिड़िया सा फुर्र - फुर्र उड़ती थी -
तभी तो तुम भी अक्सर मुझे पकड़ के मुस्कुराते हुए कहते थे क्या हर वक्त परिंदो सा उड़ती रहती हो - कभी किटी पार्टी में तो कभी योगा
क्लास में तो कभी
डांस की रिहर्सल के लिए और तब मै अपनी मुहब्बत के डैने समेट तुम्हारे बरगद सी साखों वाली डाल पे अपनी चोंच रख देती - और तुम मेरे सिर पे अपने होंठ।
सच जब याद आते हो न - तो बहुत बहुत कुछ याद आने लगता है - तुम्हारे संग साथ बिताया एक एक लम्हा - एक एक दिन - एक एक पल -
मैंने कभी कल्पना भी न की थी कि कभी तुम्हारे बिन भी रहना पड़ सकता है -
अवि जानती हो - हर स्त्री की तरह मेरी भी ख्वाहिश थी कि तुम एक बार कम से कम एक बार तो अपने मुँह से कहते - कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो -
पर तुमने कभी नहीं कहा कभी भी नहीं - इस बात से मै कई बार तो झुंझला भी जाती - उदास भी हो जाती - हाला कि मुझे भी प्रेम का आडम्बर पसंद नहीं
पर कभी कभी - थोड़ा बहुत तो ज़रूरी है - जीवन के रस को बनाए रखने के लिए - ऐसा मेरा मानना था - और इसी लिए एक तुमसे ये बात कही भी थी -
तब तुमने मुझे - पगली - कह के अपने सीने से लगा लिया था - और मै रो दी थी - और तुम मेरे बालों को सहलाते रहे थे - ये कह के - "पगली ये सब कहा नहीं जाता महसूस किआ जाता है " और मैंने रोते रोते तुम्हरी बातों की हाँ में हाँ मिला के छुप गयी थी तुम्हारे सीने में -
तुम्हे याद है अवि शुरुआत में तुम कित्ता कित्ता गुस्सा किया करते थे -
कई बार मै डर भी जाती थी - पर धीरे धीरे तुमने अपने गुस्से पे काबू किआ - और शांत शांत और शांत होते गए -
और इतने शांत हो जाओगे पता न था - वरना मैँ तुम्हे हमेशा गुस्सा वाला ही रहने देतीं -
अवि जानती हो इधर कुछ महीनो और सालों से मै तुम्हारे प्रेम को अपने लिए रोज़-रोज़ बढ़ते महसूस करती थी - ऐसा लगता था तुम अब अहले से ज़्यादा मेरी केयर करने लगे हो और ये बातें मुझे तुम्हारे शब्द नहीं तुम्हारी आँखे बतातीं तुम्हारे अंदाज़ बताते,
- जानती हो अभी कुछ दिन पहले ही मुझे जाने क्यों ऐसा आभाष हुआ की जैसे मेरी कोइ बहुत प्रिय चीज़ मुझसे खो रही है - उस दिन मै बहुत
डिस्टर्ब थी - पर मुझे क्या मालूम था - शायद काल को अपनी ये खुशी नहीं बर्दास्त हो रही है और वो तुमको ही मुझसे छीन ले जाएगा - अगर ऐसा जानती तो
मै उससे कहती तू मुझे ले जा पर मेरे अवि को बख्श दे - पर ऐसा कभी नहीं हो सकता था और न हुआ -
लिहाज़ा इस साल की दीवाली - ने अपनी अमावस्या की काली स्याही सी चादर ओढ़ा कर तुम्हे हमसे छीन ले गयी - और परिवार की खुशियों के सारे चराग़ बुझ गए - मुझे क्या पता था की इस बार की परीवा पे ज़िंदगी की सारी खुशियों के पर्वों पे ग्रहण लग जाएगा -
पर अवि तुम दुखी मत हो - इन एक हफ़्तों में तुम्हरी नीना ही नहीं तुम्हरा ईशु भी बहुत बड़ा और समझदार हो गया है -
मै भी कुछ दिनों में खुद को संभाल लूंगी ताकि -ईशु की ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा सकूं -
जानते हो उस दिन के बाद जितने लोग आ रहे हैं सब ये कह रहे थे कि मैंने तुम्हे बहुत कुछ सिखाया - पर उन लोगों को क्या पता की नीना ने नहीं
तुमने नीना को जीना सिखाया -हँसना सिखाया-समझदारी सिखाई -वरना आज तो तुम्हरी नीना टूट ही गयी होती।
खैर ! तुम उदास मत हो-मै ठीक हूँ -ईशू ठीक है-
मम्मी और परिवार के सभी लोग तुम्हे बहुत मिस करते हैं -
कहना तो बहुत कुछ है - पर फिलहाल इतना ही -
तुम्हरी अल्हड नदी
तुम्हारी चिड़िया
तुम्हारी पगली
तुम्हारी सब कुछ -- सब कुछ
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