सिरफिरा है कहाँ किसी की बात सुनता है
चढ़ते हुए दरिया को तैर के पार करता है
चढ़ते हुए दरिया को तैर के पार करता है
जानता है जो शख्स उसका नहीं होगा
फिर भी उसी को शिद्दत से प्यार करता है
फिर भी उसी को शिद्दत से प्यार करता है
झुलस गया जिस आग मे तन बदन उसका
उसी लपट से फिर फिर- खेलूंगा कहता है
उसी लपट से फिर फिर- खेलूंगा कहता है
चाँद उसी के साथ साथ चल रहा फलक पे
इसी मुगालते मे रात भर वो सफ़र करता है
इसी मुगालते मे रात भर वो सफ़र करता है
मुकेश इलाहाबादी,,,,,
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