अगर
तुम ये सोचते हों कि
तुम ये सोचते हों कि
रात के खामोश अँधेरे में
झींगुरों की आवाज़ के बीच
तुम अपने कानो को सतर्क कर के
सुन लोगे सन्नाटे की आवाज़
तो तुम गलत हो
झींगुरों की आवाज़ के बीच
तुम अपने कानो को सतर्क कर के
सुन लोगे सन्नाटे की आवाज़
तो तुम गलत हो
अगर तुम
सोचते हो तुम
अपने कानो को दोनों हाथो से बंद कर के
सुन लोगे सन्नाटे की आवाज़
तो तुम नहीं सुन पाओगे
सोचते हो तुम
अपने कानो को दोनों हाथो से बंद कर के
सुन लोगे सन्नाटे की आवाज़
तो तुम नहीं सुन पाओगे
सन्नाटे की आवाज़ सुनने के लिए
गुज़ारना होता है
एक बेहद और न ख़त्म होने वाली तकलीफ
की सुरंग से
गुज़ारना होता है
एक बेहद और न ख़त्म होने वाली तकलीफ
की सुरंग से
मुकेश इलाहाबादी --------
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