एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
Home
Monday, 5 October 2020
एक ही नदी साझा हो के बह रही थी
एक
ही नदी
साझा हो के
बह रही थी
हमारे दरम्याँ
जिसे
हम दोनों ने
उलीचा एक दूसरे पे
खुश हुए
उछलती हुई
लहरों को देख
फिर हम बहुत देर उलीचते रहे
एक दुसरे के सुख को / दुःख को
और
भीगते - भिगोते रहे
एक दूजे को
बहुत देर तक
मुकेश इलाहाबादी -----
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment