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Wednesday, 2 December 2020

माजी को चौसर बना लेता हूँ

 माजी को चौसर बना लेता हूँ 

यादों  के मोहरे सजा लेता हूँ 


अकेले खेलने का फ़ायदा ये है 

खुद से खुद को जिता लेता हूँ 


खुद  ही खुद  से रूठ जाता हूँ 

फिर खुद ही को मना लेता हूँ 


खामोशी मेरी प्यारी दोस्त है 

गुफ्तगू के लिए बुला लेता हूँ 


उदासी से जी घबरा जाता है 

तो बेबसी पे मुस्कुरा लेता हूँ 


रात अकेले नींद नहीं आती  

तेरे खवाबों को बुला लेता हूँ 


मुकेश इलाहाबादी ----------


 

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