माजी को चौसर बना लेता हूँ
यादों के मोहरे सजा लेता हूँ
अकेले खेलने का फ़ायदा ये है
खुद से खुद को जिता लेता हूँ
खुद ही खुद से रूठ जाता हूँ
फिर खुद ही को मना लेता हूँ
खामोशी मेरी प्यारी दोस्त है
गुफ्तगू के लिए बुला लेता हूँ
उदासी से जी घबरा जाता है
तो बेबसी पे मुस्कुरा लेता हूँ
रात अकेले नींद नहीं आती
तेरे खवाबों को बुला लेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ----------
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