ज़रुरत क्या हर वक़्त रोता रहे
ज़िंदगी में ग़म हैं तो होता रहे
बीते हुए दिनों का बोझा पटक
यूँ बेवजह माज़ी क्यूँ ढोता रहे
असली खुशी की फसल उगेगी
बस तू भलाई के बीज बोता रहे
ऊंचाई तेरे कदम चूमेगी अगर
आलस में तू वक़्त न खोता रहे
मुकेश इलाहाबादी -----------
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