तुझसे इश्क़ ही तो किया था हमने
तो क्या ये गुनाह कर दिया हमने
फकत चंद मुलाकातों को बचा कर
ज़िंदगी सब कुछ भुला दिया हमने
बाजुओं पे अपनी कर के भरोसा
लकीरें हाथों की मिटा दिया हमने
वो चाहता था मुझे ग़मज़दा देखे
ज़िंदगी हंस के बिता दिया हमने
सिर्फ तेरे नाम का दिया है रौशन
रात सारे चराग़ बुझा दिया हमने
मुकेश इलाहाबादी -----------
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