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Thursday, 17 December 2020

नदी बनाम समुद्र

 नदी बनाम समुद्र 

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सुमी, जानती हो ?

समंदर जितना ठहरा हुआ लगता है 

उतना हमेशा से न था 

पहले-पहल उसके अंदर बहुत हलचल हुआ करती थी 

बहुत गरजता था 

जब गरजता तो जलजला सा आ जाया  करता था

मानो धरती आकाश एक हो जाया करते थे 

धरती और समंदर के सभी जीव घबरा जाया करते थे  

समंदर को अपनी भव्यता 

और गर्जना पे नाज़ था 

पर हुआ 

यूँ कि 

एक दिन उसे 

यूँ ही 

ख़याल आया कि 

दुनिया में उसे छोड़

कोइ भी अकेला नहीं है 


धरती के लिए - सूरज है 

चाँद के पास - चॉँदनी है 

चातक के पास - चकोर है 

राग के पास - रागनी है 

दिए के पास - रोशनी है 

पर मेरे लिए ???

कोई नहीं है,

तब, 

उसने ये बात देवताओं से कही 

देवतोओं ने कहा 

ऐसा नहीं है 

तुम्हारे लिए 'नदी " है 

तुम उसे पुकारो वो तुम तक 

दौड़ी चली आयेगी 


ये सुन समंदर खुश हुआ 


उसने सूरज की किरणों की सतह पे 

ख़त  लिखा 

बादल को डाकिया बनाया 

अपना प्रणय निवेदन कहला भेजा 


जिस वक़्त बादल डाकिया 

नदी के पास पहुँचा 

उस वक़्त अल्हड नदी 

अपनी शोख अदाओं से 

अपने पिता पर्वत की गोद में 

खेल रही थी 

उसके साथ 

उसके साथी संगाती 

शावक 

हिरन 

गिलहरी 

पेड़ - पौधे तमाम गुल्म और लताएं 

शोख़ और चंचल नदी के साथ किलोल कर रहे थे 

किन्तु 

बादल के द्वारा समंदर का प्रेम संदेसा पा 

नदी विह्वल हो गयी 

खुशी से उसकी आँखों से नीर बहने लगे 

वो अपने प्रेमी समंदर से मिलने को 

व्याकुल हो गयी 

उसने अपने पिता पर्वत से विदा लिया 

और,

चल पडी एक अंजाने और अबूझे पथ पर 

और फिर वो तमाम शहर 

जंगल और बस्तियों से गुज़रती हुई 

सब से मिलती बतियाती सब को खुशी बाँटती हुई 

खुद मैली होती हुई 

तमाम दुःख सहती हुई 

अपने प्रेमी के लिए बढ़ती गयी 

बढ़ती गयी 

और एक दिन वो अपने सजन 

के पास पहुँच ही गयी और 

हरहरा कर उसकी बाहों में खो गयी 

अब समंदर भी बहुत खुश है 

और शांत है 

हाँ ये और बात 

जब चाँद अपनी चाँदनी  के साथ 

किलोल करता है तब 

समंदर भी अपनी लहरों को उछाल के 

नदी को साथ होने की खबर करता है 


तो समझी मेरी प्यारी पग्गू सुमी ??

समंदर कब से और क्यूँ इतना शांत रहता है ??

क्यूँ की उसके पास उसकीऔर  नदी मिलने आती है 



मुकेश इलाहाबादी -------------------------------










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