तुम
बारिश मे याद आये
भीग जाने के लिए
पोर- पोर
पुलकित होने को
सर्वांग
तुम सर्द रातों मे
याद आये
मद्धम - मद्धम जलते
अलाव की
मीठी मीठी आंच मे तापने की
तुम बहतु
याद आये पतझड़ में
बसंत के इंतज़ार में
वर्ष के किस मौसम में
याद आया मै
पूछता हूँ तुमसे आज
मुकेश इलाहाबादी ----
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