फुटकर नोट्स - सुमी के लिए
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एक
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मेरे,
सारे रंगहीन ख़्वाब
तुम्हारी आँखों के
प्रिज़्म से गुजरते ही
सतरंगी हो गए
दो
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तुम्हारी
आँखों में पानी
और मेरे
पास शब्दों की माटी थी
जो आपस में गूँथ के
नज़्मों की शक्ल में ढलते जा रहे हैं
तीन
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बस
एक बार अपने होठो से नहीं
आँखों से कह दो 'न "
फिर मै लौट जाऊँगा
अपने मौन के कोटर में
न लौटने के लिए
मुकेश इलाहाबादी --
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