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Saturday 20 February 2021

अरसा हुआ अपने से बात नहीं होती

 अरसा हुआ अपने से बात नहीं होती 

खुद से खुद की मुलाकात नहीं होती 


हर वक़्त आफ़ताब दहकता रहता है 

ज़िंदगी के फलक पे रात नहीं होती 


आब की इक भी बूँद न पाओगे तुम 

सावन में भी यहाँ बरसात नहीं होती 


आँखों ही आँखों में बात हो जाती है 

हमारे बीच खतो किताबत नहीं होती 


जो कुछ भी हासिल सबमे में हूँ राजी 

ज़िंदगी से अपनी अदावत नहीं होती 


मुकेश इलाहाबादी --------------------


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