अरसा हुआ अपने से बात नहीं होती
खुद से खुद की मुलाकात नहीं होती
हर वक़्त आफ़ताब दहकता रहता है
ज़िंदगी के फलक पे रात नहीं होती
आब की इक भी बूँद न पाओगे तुम
सावन में भी यहाँ बरसात नहीं होती
आँखों ही आँखों में बात हो जाती है
हमारे बीच खतो किताबत नहीं होती
जो कुछ भी हासिल सबमे में हूँ राजी
ज़िंदगी से अपनी अदावत नहीं होती
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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