दोस्ती भी हमी से दुश्मनी हमी से
ख़फ़ा भी हमी से रजा भी हमी से
बात ईश्क़ की वो करती नहीं पर
हाँ जहान की बात करती हमी से
कभी फ़ूल सा महके है तो कभी
खुशबू बन के लिपटती हमी से
चाहत तो है खुल के मिले मगर
खुद को छुपा के रखती हमी से
अजब चाहत है उसकी ईश्क़ में
मौत भी चाहे ज़िंदगी भी हमी से
मुकेश इलाहाबादी -------------
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