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Tuesday 2 February 2021

ओ, मेरी चिड़िया

 ओ !

मेरी सुमी
ओ, मेरी चिड़िया
मुझे मालूम है
तुमने अपने जिन अंडे बच्चों को
अपनी चोंच से दाना -पानी खिलाया है
अपने नाज़ुक डैनो में जिन्हे सेया है
वे चूजे
खुले आसमान में बेख़ौफ़ उड़ने लगे होंगे
कुछ अपने अपने घोसले बना शिफ्ट हो गए होंगे
जो नहीं हुए होंगे वे भी
इस लायक होंगे कि
नीले आसमान में बिन तुम्हारे सहारे उड़ रहे होंगे
तुम्हारा "चिड़ा" भी
अपने ऑफिस या काम में व्यस्त रहता होगा
लिहाज़ा अब तुम
सब के लिए लगभग फालतू सी चीज़ हो गयी होगी
जिसे सिर्फ और सिर्फ काम के वक़्त याद किया जाता होगा
और
ऐसे में
तुम्हारे अंदर घर के कामो से फुर्सत पाते ही
एक उदासी
एक खाली पन का बरगद अपनी जड़ें फैला के
छतनार सा तन जाता होगा
जिसपे यादों की चिड़ियाँ चहचहाने लगती होंगी
जिन्हे कई बार सुना अनसुना कर के
एक बी पे मेरी पोस्ट पढ़ती होगी
बहुत कुछ सोचती होगी
हाँ या न के झूले में झूलती होगी
सिर्फ और सिर्फ
एक लाइक या कमेंट करने के लिए
मेरी कविता या पोस्ट पढ़ने के बाद
कई बार कुछ सोचते हुए
कई बार यूँ ही
मेरी पोस्ट को पढ़ती हो और
स्क्रॉल कर के आगे बढ़ जाती हो
ठीक उसी तरह
जैसे
आज से ढाई दशक पहले
उस दिन तुम
चाह के भी बिना कुछ कहे आगे बढ़ गयी थी
जिस दिन तुमने
मेरी आँखों में पढ़ लिया था
एक अनलिखी कविता अपने लिए
खैर, मेरे लिए तो इतना ही काफी है
तुमने मेरी कविताओं को पढ़ा तो
महसूसा तो
भले ही आँखों में या
अब एक बी पे
बाकी तो मै तुम्हारे अनंत मौन से जान ही जाता हूँ
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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