तुम्ही को मनाना तुम्ही से रूठना है
सफर तुम्हारे संग ही तय करना है
जी तो चाहे है जी भर नहा लूँ इसमें
तुम्हारी आँखों में इश्क़ का झरना है
जो फुर्सत मिल जाए तुम्हे गैरों से
मुझे भी तुमसे बहुत कुछ कहना है
अब कहीं तेरा दर छोड़ जाना नहीं
अब तेरे दर पे ही जीना है मरना है
तू हँसती है तो रजनीगंधा झरते है
मुझे इन महकते फूलों को चुनना है
मुकेश इलाहाबादी --------------
No comments:
Post a Comment