रात दर्दों ग़म की बारिश होती रही
उदासी अंधेरों से लिपट रोती रही
इक नदी फिर आँख में उमड़ आयी
तकिया कुहनी चादर भिगोती रही
कभी तुम मेरे थे ही नहीं फिर क्यूँ
बार बार तुमसे मुलाकात होती रही
तमाम रिश्ते काँच के टुकड़े निकले
मुकेश तेरी यादें ही सुच्चे मोती रहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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