Pages

Friday 22 September 2023

रात दर्दों ग़म की बारिश होती रही

 रात दर्दों ग़म की बारिश होती रही

उदासी अंधेरों से लिपट रोती रही
इक नदी फिर आँख में उमड़ आयी
तकिया कुहनी चादर भिगोती रही
ख़्वाहिशें थी काँच सा बिखरती रही
उम्मीदें थी ख्वाबों को संजोती रही
कभी तुम मेरे थे ही नहीं फिर क्यूँ
बार बार तुमसे मुलाकात होती रही
तमाम रिश्ते काँच के टुकड़े निकले
मुकेश तेरी यादें ही सुच्चे मोती रहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------
1 व्यक्ति, दाढ़ी और मुस्कुराते हुए की फ़ोटो हो सकती है
सभी रिएक्शन:
166

No comments:

Post a Comment