एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 24 February 2012
हीर की पाजेब तो अब भी खनकती है
बैठे ठाले की तरंग -------------
हीर की पाजेब तो अब भी खनकती है
वे रांझे ही न जाने कंहा ग़ुम हो गए
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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