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Sunday 25 March 2012

जब से आईना बन के देखा है

बैठे ठाले की तरंग -----------


जब  से  आईना बन के देखा है
दुनिया  को  कई  रंगों में देखा है

बहुतों  ने  पत्थर से वार  किया,
कईयों  ने  मुहब्बत  से   देखा है 

चाँद को भी आग सा जलते, और
सूरज को धुंध में लिपटते देखा है

क़तरा ऐ अब्र को समंदर बनते,औ
समंदर को कतरे  में  डूबते  देखा है

जो सिकंदर बनके इतराते थे, कभी
इक दिन ख़ाक में मिलते हुए देखा है

मुकेश इलाहाबादी ---------------------


सूरज को धुंध में लिपटते

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