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Sunday 18 March 2012

धूप का टुकडा भी आखिर मचल गया

बैठे ठाले की तरंग ----------------

धूप का टुकडा भी आखिर मचल गया
जुल्फों से छन के गालों पे खिल गया

अज़ब नाज़ुकी देखी उनके बदन की
फूलों की छूने से भी  छिल छिल गया

बहुत  सख्त  जाँ बनता था,खुद को
पाके मुहब्बत की आंच पिघल गया

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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