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Friday 16 March 2012

शामो सहर वीरानियाँ सी क्यूँ है ?

बैठे ठाले की तरंग --------

शामो सहर वीरानियाँ सी क्यूँ है ?
हर वक़्त ये बेचैनियाँ सी क्यूँ है ?

मिलते भी हैं, गुफ्तगू भी होती है
फिर,दर्मयाँ हमारे दूरियां सी क्यूँ है ?

प्यारा शख्स है, हंसता भी हैं खूब
फिर घर उसके सिसकियाँ सी क्यूँ है ?

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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