औरत जो सड़क पे पत्थर तोडती है
हथौड़े की हर चोट पे खवाब जोडती है
पसीने मे तरबतर बदन छुप नहीं पाता
सर झुका के आँचल से बेबसी पोछती है
लुच्चे ठेकेदार को क्या पता वह औरत
उसे देख कर हिकारत से मुह मोडती है
पेड़ की छांह मे सो है रहा उसका छौना
बच्चे की खातिर तो पत्थर तोडती है
कलुआ जब नेह से देखता है उसको,
शरम से गडी हुई आँचल मरोड़ती है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteपूरी रचना बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी.
ReplyDeleteवाह वाह वाह चंद पंक्तियों मे सब कुछ कह दिया लाजवाब अभिग्यक्ति
ReplyDeleteनवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
bahut badhiya gager me sagar......
ReplyDeleteaabhar
Deleteश्रीवास्तव जी सादर,
ReplyDeleteबहुत खूब ... बहुत ही बढ़िया रचना .. बधाई !
एक गरीब मजदूर औरत के चित्र से न्याय करती हुई प्रस्तुति बहुत बढ़िया बधाई आपको|
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