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Saturday, 13 April 2013

औरत जो सड़क पे पत्थर तोडती है


औरत जो सड़क पे पत्थर तोडती है
हथौड़े की हर चोट पे खवाब जोडती है 

पसीने मे तरबतर बदन छुप नहीं पाता
सर झुका के आँचल से बेबसी पोछती है

लुच्चे ठेकेदार को क्या पता वह औरत
उसे देख कर हिकारत से मुह मोडती है

पेड़ की छांह मे सो है रहा उसका छौना
बच्चे की खातिर तो  पत्थर तोडती है

कलुआ जब नेह से देखता है उसको,
शरम  से गडी हुई आँचल मरोड़ती है

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  2. पूरी रचना बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी.

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  3. वाह वाह वाह चंद पंक्तियों मे सब कुछ कह दिया लाजवाब अभिग्यक्ति

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  4. नवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
    आपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
    बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    मेरी मांग

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  5. bahut badhiya gager me sagar......

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  6. श्रीवास्तव जी सादर,
    बहुत खूब ... बहुत ही बढ़िया रचना .. बधाई !

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  7. एक गरीब मजदूर औरत के चित्र से न्याय करती हुई प्रस्तुति बहुत बढ़िया बधाई आपको|

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