Pages

Sunday 14 April 2013

मै तुम्हे पूजना नहीं,





मै तुम्हे पूजना नहीं,
चाहना चाहता हूँ
तुम्हारे माथे पे,
चाँद नही,
सूरज उगाना चाहता हूँ
तुम खुद दौड़ सको, इसलिए
तुम्हारी सदियों की पायल बेडी 
तोड़ना चाहता हूँ
पुष्प हार की जगह
स्वतन्त्रता का हार
देना चाहता हूँ
सिर्फ नौ दिन पूज कर
फिर भूलने की आदत
छोड़ना चाहता हूँ
अपने बराबर का दर्ज़ा
व, मुहब्बत की
नई परिभाषा देना चाहता हूँ  
ये कुछ नए संकल्पों के
तोहफे हैं,जो तुम्हे देना चाहता हूँ
मै, तुम्हे पूजना नहीं,
चाहना चाहना चाहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ----------------

No comments:

Post a Comment