एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Saturday, 1 February 2014
ज़रूरी तो नहीं आँसू क़तरा ऐ आब बन के बहें
ज़रूरी तो नहीं आँसू क़तरा ऐ आब बन के बहें
अक्शर ये खामोश निगाहों में भी निहां रहते हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
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