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Monday 10 March 2014

इश्क़ की बेचैनियाँ देखी

इश्क़ की
बेचैनियाँ देखी
ज़माने की
तल्खियां देखी
मौसमे खिज़र में
शाख से टूटती
ज़र्द पत्तियां देखी
गुलाब को भी
मात कर दे
रुखसार की ऐसी
सुर्खियाँ देखी
वक़्त से पहले बुढ़ाती
तमाम जवानियाँ देखी
भीड़ के चेहरे पे चस्पा
चुप्पियाँ देखी
किसी भी साज़ से न टूटे
हमने ऐसी खामोशियाँ देखी
नज़्म में मुकेश की
ढेरों खूबियां देखी

मुकेश इलाहाबादी --------

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