Pages

Friday 14 March 2014

खड़ी बदनशीबी रास्ता रोक कर

खड़ी बदनशीबी रास्ता रोक कर
नजूमी कह गया लकीरें देख कर

हम दर्द बना फिरता था अब तक
चला गया आज वह भी मुड़ कर

चाहता तो ज़वाब दे सकता था
मग़र चुप रह गया कुछ सोच कर

काली घनेरी रात के आलम में
बैठा हूँ देर से खामोशी ओढ़ कर 

नहीं लौटेगा इस बेदर्द शहर में
मुकेश गया हमसे यह बोल कर

मुकेश इलाहाबादी ----------------
 

No comments:

Post a Comment