एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
Home
Friday 23 May 2014
दिल में दरिया बहा रक्खा है
दिल में दरिया बहा रक्खा है
तमाम ज़ख्म छुपा रक्खा है
ज़ालिम ने हुस्न के दम पर
ज़माना सर पे उठा रक्खा है
बहुत मासूम सा है क़ातिल
ग़दर जिसने मचा रक्खा है
खामोश निगाहों के पीछे
तमाम राज़ छुपा रक्खा है
मरने वालों की फेहरिस्त में
हमने नाम लिखा रक्खा है
मुकेश इलाहाबादी ---------
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment