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Sunday 18 May 2014

ख़त का हमारे जवाब आया लेकिन

ख़त का हमारे जवाब आया लेकिन
हमको दुश्मने जाना लिखा लेकिन

बैठे तो थे हम भी महफ़िल में उनके
सबको देखा हमको न देखा लेकिन

हुई तबीयत ऐ नाशाज़ जिनके वास्ते
मिज़ाज़पुर्शी को भी न आया लेकिन

जी तो उसका भी बहलता है मुझी से
फिर क्यूँ मुझको न बुलाया लेकिन ?

ख़ाक बन के लिपट जाऊं कदमो से
फिर कुछ सोच के रुक गया लेकिन

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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