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Monday 25 August 2014

कि चलो साँझ हो गयी घर चलें

कि चलो साँझ हो गयी घर चलें
जिनका घर नहीं वो किधर चलें

ज़मीं पर कोई जगह बची  नहीं
चलो घर बसाने चाँद पर चलें ?

मंज़िल दूर और कठिन डगर है
क्यूँ न हम ठहर- ठहर कर चलें

जिन्हे मंज़िल पे जल्दी जाना  है
गुज़ारिश उनसे आठों पहर चलें

जिनके पास घोड़ा- गाड़ी नहीं है
बेहतर है कि वे फुटपाथ पर चलें

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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