कि चलो साँझ हो गयी घर चलें
जिनका घर नहीं वो किधर चलें
ज़मीं पर कोई जगह बची नहीं
चलो घर बसाने चाँद पर चलें ?
मंज़िल दूर और कठिन डगर है
क्यूँ न हम ठहर- ठहर कर चलें
जिन्हे मंज़िल पे जल्दी जाना है
जिनका घर नहीं वो किधर चलें
ज़मीं पर कोई जगह बची नहीं
चलो घर बसाने चाँद पर चलें ?
मंज़िल दूर और कठिन डगर है
क्यूँ न हम ठहर- ठहर कर चलें
जिन्हे मंज़िल पे जल्दी जाना है
गुज़ारिश उनसे आठों पहर चलें
जिनके पास घोड़ा- गाड़ी नहीं है
बेहतर है कि वे फुटपाथ पर चलें
मुकेश इलाहाबादी ----------------
जिनके पास घोड़ा- गाड़ी नहीं है
बेहतर है कि वे फुटपाथ पर चलें
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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