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Wednesday 17 September 2014

तुम कंही भी जाओगे

तुम कंही भी जाओगे 
लौट के यहीं आओगे
देखना सच जीतेगा
अंजाम यही पाओगे
बर्फ हूँ मै गल जाऊंगा
तुम एक नदी पाओगे
मेरी खामोश घाटी में
अपनी आवाज़ पाओगे
जब लौट के आओगे
मुझको यहीं पाओगे

मुकेश इलाहाबादी --

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