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Thursday 9 October 2014

मिटा के सारी इबारत यादों की सलेट के

मिटा के सारी इबारत यादों की सलेट के
सो गया हूँ मुँह ढक कर  चादर लपेट के

तोड़ डाले सारे जाम मुहब्बत के नाम के
बिन रहा हूँ ,अब टुकड़े दिल की पलेट के

थक गया हूँ चल चल के तेरी तलाश में
ख़ाबों से दिल बहलाऊँ बिस्तर पे लेट के

तुमको न दिखेगा मुकेश अब शहर में
वो जा चुका है  साज़ो सामान समेट के

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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