Pages

Thursday, 23 April 2015

जब भी मै कोई प्रेम गीत गाना चाहता हूँ

जब भी
मै कोई प्रेम गीत
गाना चाहता हूँ
मै, और बेसुरा हो जाता हूँ
मुँह से सिर्फ फों फों की
आवाज़ आती है
इसके बावजूद कोशिश करूँ तो
मेरा प्रेम गीत
शोक गीत में तब्दील हो जाता है
तब मेरा अधेड़ और
पकी दाढ़ी वाला चेहरा
और भी ग़मगीन व मरा - मरा लगता है 
और मेरी बीबी
इस बेसुरे गीत को सुन के
अपने तमाम दुखों के बावजूद
मुस्कुरा के किचन में काम करने चली जाती है
यह कह के
कि
अब तुम्हारी उम्र नहीं रही प्रेम गीत गाने की

मुकेश बाबू
मै तुमसे पूछना चाहता हूँ
क्या सचमुच में प्रेम गीत गाने की कोई उम्र होती है
या फिर
प्रेम गीत सिर्फ कुछ लोग ही गा सकते हैं
जिनके बाल व दाढ़ी काली हो
और जिन्हे कोई  दाल रोटी की फिक्र न हो ?
और उनके गाल मेरी तरह पिचके न हों

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

No comments:

Post a Comment