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Monday 20 April 2015

सूरज के खिलते ही इठलाकर खिलता है सूरजमुखी ,

सूरज के
खिलते ही
इठलाकर खिलता है
सूरजमुखी ,
शरमा कर
लेकिन
नजरें झुका लेता है
तब
जब, तुम नहाकर
सूरज को देती हो जर्लाध्य

तुम्हारे
हंसने से
खिलता है
गुलाब
और झरते हैं
हरश्रंगार
जिसकी खुशबू से
महमहा जाते हैं
मेरे दिन और रात
मुकेश इलाहाबादी ---

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