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Thursday 3 September 2015

अपने दर्दों ग़म ले कर कहाँ जाऊँ

अपने दर्दों ग़म ले कर कहाँ जाऊँ 
जहां भी जाऊँ तेरे ही निशाँ पाऊँ 

है मेरे जिस्मो जाँ में तेरी खुशबू 
बता तेरी ये खुशबू कहाँ  छुपाऊँ 

ख़्वाब  ने  तेरी तस्वीर बनाई है 
अब सोचता हूँ इसे कहाँ सजाऊँ

अपने उजड़े उजड़े दिले मकाँ में 
तुझ नाज़नीं को, किधर बिठाऊँ 

आ तू कुछ देर मेरे पहलू में बैठ 
तुझे तुझपे लिखी ग़ज़ल सुनाऊँ 

मुकेश इलाहाबादी -------

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