Pages

Thursday 14 January 2016

ज़िंदगी अपनी बरबाद हुई जाती है

ज़िंदगी अपनी बरबाद हुई जाती है
बिन तारों का आकाश हुई  जाती है 
चले आओ, दिन  रहे  मुलाक़ात  हो
साँझ के बाद, अब रात हुई जाती है
पढ़ लो अपने नाम की ग़ज़ल, वर्ना
ज़ीस्त बिन पढ़ी किताब हुई जाती है 
तुम्हारे साथ हक़ीक़त है ज़िन्दगी
वरना  ज़िंदगी ख्वाब हुई जाती है
मुकेश इलाहाबादी -------------------




No comments:

Post a Comment