Pages

Sunday 28 February 2016

पत्थरों को काट कर निकला हूँ मै

पत्थरों को काट कर निकला हूँ मै
तिश्ना  लबों  के  लिए दरिया हूँ  मै

मेरा सीना पुल है गुज़र जाओ तुम
नदी के पार जाने का जरिया हूँ मै 

कोई  मुसाफिर भटकने न पायेगा
राहमें मील के पत्थर सा गड़ा हूँ मै 
 
मुकेश इलाहाबादी ------------------

(तिश्ना लब - प्यासे होठ )

No comments:

Post a Comment