Pages

Friday 6 May 2016

जैसे, बाँध लेती हो तुम

जैसे,
बाँध लेती हो
तुम साड़ी के पल्लू में
छुट्टे पैसे
 टुडे मुड़े नोट
या फिर
कागज़ की कोई
ज़रूरी पुरजी
और कभी - कभी
टूटी अंगूठी
कान का बाला
या किसी का खत भी
और खोंस लेती हो
कस के गाँठ लगा के
अपनी कमर में
बस ! ऐसे ही
बाँध लो तुम
मेरा नाम
और भूल जाओ
हमेशा हमेशा के लिए
इस गाँठ को खोलना

(मेरी प्यारी सुमी,
सुन रही हो न , तुम्ही से कह रहा हूँ )

मुकेश इलाहाबादी ------------





No comments:

Post a Comment