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Thursday 16 March 2017

शोर के नाम पे हवा सनसनाती है

शोर के नाम पे हवा सनसनाती है
या कि,मेरी खामोशी गुनगुनाती है
जब कभी सुनहरा ख्वाब देखा तब
आँखे मुस्कृराती नींद कुनमुनाती है
तुम्हारी मासूम हँसी को क्या कहूँ 
चांदी के सिक्के सी खनखनाती है

मुकेश इलाहाबादी --------------

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