एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 16 March 2017
ख्वाब, महल,जिसे कभी
ख्वाब,
महल,जिसे कभी
बड़ी शिद्दत से
तामील किया था
हमने और तुमने
खंडहर में
तब्दील हो चूका होगा
जब तक तुम
लौट कर आओगे
मगर
उसकी ध्वंश दीवारों में
तुम अपना नाम लिखा पाओगे
मुकेश इलाहाबादी -----------
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