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Wednesday 17 May 2017

दिल में सूरज उगाये बैठे हैं,

दिल में सूरज उगाये बैठे हैं,
आग इश्क़ की लगाये बैठे हैं

जाने कब चाँद छत पे आये
सभी टकटकी लगाए बैठे हैं

कोइ दवा न देगा, इसीलिए
ज़ख्म अपने छुपाये बैठे हैं

करते हैं बात, साफ़ सुथरी
मन में गिरह लगाए बैठे हैं

जब से कलंदरी रास आयी
हम सब कुछ लुटाये बैठे हैं

मुकेश इलाहाबादी ---------

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