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Wednesday 31 May 2017

ग़म के आँसुओं को पिया है हमने

ग़म के आँसुओं को पिया है हमने
इस तरह तिश्नगी मिटाया है हमने

अपने घाव पे हमने फूल रख दिया
किस तरह ज़ख्म छुपाया है हमने

मेरा माज़ी मत याद दिला, उसको
बड़ी मुश्किल से भुलाया है हमने 

अंधेरी रातों में तन्हा भटका किये
किसी तरह ज़िंदगी जिया है हमने

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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