एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
Home
Tuesday, 23 May 2017
हंसी इक चिड़िया है
तुम्हारी
हंसी इक चिड़िया है
जो कभी - कभी
फुर्र - फुर्र उड़ती हुई
मुंडेर पे बैठ जाती है
और फिर मेरी उदास मुंडेर
देर तक मुस्कुराती है
नरम धूप का दुशाला ओढ़े हुए
मुकेश इलाहाबादी ------------
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment