Pages

Sunday 9 July 2017

नेट खोलता हूँ


एक
----

नेट
खोलता हूँ
तुम ऑन लाइन नहीं दिखती
उदास हो के
कुछ देर स्क्रीन को स्क्रॉल करता हूँ
दो चार पोस्ट वजह - बेवज़ह लाइक करता हूँ
तुम अब भी ऑन लाइन नहीं दिखी
एक गहरी साँस भर के
नेट ऑफ़ कर देता हूँ
कुछ देर बाद फिर से ऑन करने के लिए
शायद तुम्हारी डी पी के आगे
हरी बत्ती जल चुकी हो
शायद,

दो
---------

नेट
खोलता हूँ
तुम्हारी डी पी के आगे
हरी बत्ती जल रही है
मै खुश हो के तुम्हारे चैट बॉक्स में
इक प्यारा सा कैप्शन उछाल देता हूँ
तुम्हारी तरफ से कोई जवाब नहीं
मै फिर उदास हो कर
कुछ देर स्क्रीन को स्क्रॉल करता हूँ
तुम ऑफ लाइन हो जाती हो
या हमें ऑन लाइन देखे मुझे अपने चैट
से ऑफ कर देती हो
मै उदास हो कर नेट ऑफ कर देता हूँ
कुछ देर बाद फिर से नेट खोलने के लिए

तीन
-------
मेरे
बहुत सरे मैसेज का
तुमने जवाब नहीं दिया
अब सिर्फ तुम्हे
गुड़ मॉर्निंग
गुड़ इवनिंग का मेसेज भेजता हूँ
इस उम्मीद से
शायद किसी दिन इस हरी बत्ती से
कोई प्यारा सा मैसेज 'हाँ' का
मेरे लिए उछल कर बाहर आये

चार
-------
उसकी
तमाम उम्मीदें न उम्मीदी में
बदल चुकी हैं
अब उसके  मेसेज दूसरी हरी बत्ती में जाते हैं
वहाँ से हरा सिग्नल भी मिल रहा है
वह बहुत खुश है
उसका नेट दिन भर और रात में भी
देर तक ऑन लाइन रहता है


मुकेश इलाहाबादी ----------- 

No comments:

Post a Comment