Pages

Wednesday, 1 November 2017

फलक पे उड़ने उड़ने को जी चाहता है

फलक पे उड़ने उड़ने को जी चाहता है
तुमसे मिल के मन परिंदा हो जाता है

आहट तो होती है, पर कोई होता नहीं
जाने कौन है ? कुंडी खटखटा जाता है

मै मौन हूँ तुम भी तो देर से चुप, फिर 
ये कौन है जो कानो में गुनगुनाता है ?

मुआ ईश्क़ भी इक पिल्ले का बच्चा है
वक़्त बेवक़त, भौंकता है चिंचियाता है 

तुम्हारी आँखे मेरा डाकिया मुझसे तेरा
हाले दिल सुना जाता है, बता जाता है 


मुकेश इलाहाबादी ---------------------

No comments:

Post a Comment